"तेरे शहर में"
बहुत सुना है तेरा भी नाम तेरे शहर में
आशिक है तेरे तमाम तेरे शहर में|
मुझे शराबी कहते लोग,क्या बात हैं,
हर गली है बदनाम तेरे शहर में|
बेकारी ने मारा तो भाग आया था इसकी तरफ,
मिल नहीं पाया मेरे लायक काम तेरे शहर में|
मंदिर और मस्जिद तो खूब देखे मैंने वहां भी,
फिर तेरा ही घर क्यों है बदनाम तेरे शहर मैं|
हमको वेवफा जबसे नाम तूने दे दिया,
नस्ल आशिकों की हो गयी है गुमनाम तेरे शहर में|
शराब और तेरी दोस्ती जब से सुर्ख़ियों में आयी है,
बच्चा बच्चा पूचता है तेरा नाम तेरे शहर मैं|
नाचते हें महफिलों में वो मुजरे वालों की तरह,
कौन पिला रहा है वेवाफओं को खुलेआम तेरे शहर मै|
हड़ताल थी आशिकों की तबाही का मंजर था हर तरफ,
बंद रही हुस्न वालों की दुकान तेरे शहर मै|
कल दंगो की खबर आये तो चौकना तू मत,
देखकर आया हूँ मयखाने के सामने घमासान तेरे शहर में
मुखालफत सी भी थी,एक जंग सी भी, कि बड़ा मेला था कल वहां
कब्रगाह भी वही हैं, वही हैं घर तेरा, वहीँ शराब की दुकान तेरे शहर में|
धोखों की रवायत है ब्यापारी हर शख्स हुवा,
मुहब्बत कहाँ है वहां हर घर है मकान तेरे शहर में|
किसी शख्स को तहजीब से मतलब अब रहा नहीं वहां
गायब कब हो गयी आन-बान और शान तेरे शहर में,
मै तो गावं में पला बड़ा हूँ ये कल्पना भी नहीं थी,
क्या शक्ल बना बैठा है हिंदुस्तान तेरे शहर में|
हर जगह ईमान तो बिकता है मगर अब भी, बहुत छुपकर
पहली बार रेड़ियों मै देखा ईमान तेरे शहर में|
मंदिर से मस्जिद तक मैं ढूंढता रह गया तेरा अक्स वहां,
नहीं मिलता अब कही भी तेरा निसान तेरे शहर में|
हमने ही करी थी आखिरी बार मुहब्बत शायद वहां,
आशिक नहीं रहे वेवाफाई हो गयी है आम तेरे शहर में|
महबूबों से भी लेने लगे हैं कही तरह के काम लोग आजकल,
कि लोग पूछते हैं आम के आम गुठलियों के दाम तेरे शहर में
ये कैसी रवायतें है ये कैसा अंदाज है तहजीबों का,
कि जिसे दुनिए कहे नाम वही है बदनाम तेरे शहर में|
तेरे जाने के बाद उसे न जाने क्या गवारा न लगा,
कि ताउम्म्र ढूढता रह मै एक अदद इन्सान तेरे शहर में|
तू कहती है, तुझे घर आपना बेचना है वहां से,
किसे में मस्जिद कहूँगा गर न रहा वो मकान तेरे शहर में,
तेरी ही नेमत से वो शहर अब तक मेरा भी शहर रहा है,
तूने छोड़ दिया गर तो छोड़ देगी मुझे मेरी जान तेरे शहर में|
क्या हुवा जो बिक गयी अपनी आन-बान और शान वहां,
जीने का सहारा हैं अब भी वो यादें वो किस्से तमाम तेरे शहर में|
वो यादें पीने कि फिर जीने कि मुझे अब जीने नहीं देती,
शराब तो मिल जाती है पर नहीं मिलते अब वो नशीले जाम तेरे शहर में|
सब कुछ बदल जायेगा पर वो यादें कसे बदलेंगी,
अक्सर याद आ जाते है वो चाचा जी का खुमचा
वो बूबू जी कि दुकान तेरे शहर में|
ya
बहुत सुना है तेरा भी नाम तेरे शहर में
आशिक है तेरे तमाम तेरे शहर में|
मुझे शराबी कहते लोग,क्या बात हैं,
हर गली है बदनाम तेरे शहर में|
बेकारी ने मारा तो भाग आया था इसकी तरफ,
मिल नहीं पाया मेरे लायक काम तेरे शहर में|
मंदिर और मस्जिद तो खूब देखे मैंने वहां भी,
फिर तेरा ही घर क्यों है बदनाम तेरे शहर मैं|
हमको वेवफा जबसे नाम तूने दे दिया,
नस्ल आशिकों की हो गयी है गुमनाम तेरे शहर में|
शराब और तेरी दोस्ती जब से सुर्ख़ियों में आयी है,
बच्चा बच्चा पूचता है तेरा नाम तेरे शहर मैं|
नाचते हें महफिलों में वो मुजरे वालों की तरह,
कौन पिला रहा है वेवाफओं को खुलेआम तेरे शहर मै|
हड़ताल थी आशिकों की तबाही का मंजर था हर तरफ,
बंद रही हुस्न वालों की दुकान तेरे शहर मै|
कल दंगो की खबर आये तो चौकना तू मत,
देखकर आया हूँ मयखाने के सामने घमासान तेरे शहर में
मुखालफत सी भी थी,एक जंग सी भी, कि बड़ा मेला था कल वहां
कब्रगाह भी वही हैं, वही हैं घर तेरा, वहीँ शराब की दुकान तेरे शहर में|
धोखों की रवायत है ब्यापारी हर शख्स हुवा,
मुहब्बत कहाँ है वहां हर घर है मकान तेरे शहर में|
किसी शख्स को तहजीब से मतलब अब रहा नहीं वहां
गायब कब हो गयी आन-बान और शान तेरे शहर में,
मै तो गावं में पला बड़ा हूँ ये कल्पना भी नहीं थी,
क्या शक्ल बना बैठा है हिंदुस्तान तेरे शहर में|
हर जगह ईमान तो बिकता है मगर अब भी, बहुत छुपकर
पहली बार रेड़ियों मै देखा ईमान तेरे शहर में|
मंदिर से मस्जिद तक मैं ढूंढता रह गया तेरा अक्स वहां,
नहीं मिलता अब कही भी तेरा निसान तेरे शहर में|
हमने ही करी थी आखिरी बार मुहब्बत शायद वहां,
आशिक नहीं रहे वेवाफाई हो गयी है आम तेरे शहर में|
महबूबों से भी लेने लगे हैं कही तरह के काम लोग आजकल,
कि लोग पूछते हैं आम के आम गुठलियों के दाम तेरे शहर में
ये कैसी रवायतें है ये कैसा अंदाज है तहजीबों का,
कि जिसे दुनिए कहे नाम वही है बदनाम तेरे शहर में|
तेरे जाने के बाद उसे न जाने क्या गवारा न लगा,
कि ताउम्म्र ढूढता रह मै एक अदद इन्सान तेरे शहर में|
तू कहती है, तुझे घर आपना बेचना है वहां से,
किसे में मस्जिद कहूँगा गर न रहा वो मकान तेरे शहर में,
तेरी ही नेमत से वो शहर अब तक मेरा भी शहर रहा है,
तूने छोड़ दिया गर तो छोड़ देगी मुझे मेरी जान तेरे शहर में|
क्या हुवा जो बिक गयी अपनी आन-बान और शान वहां,
जीने का सहारा हैं अब भी वो यादें वो किस्से तमाम तेरे शहर में|
वो यादें पीने कि फिर जीने कि मुझे अब जीने नहीं देती,
शराब तो मिल जाती है पर नहीं मिलते अब वो नशीले जाम तेरे शहर में|
सब कुछ बदल जायेगा पर वो यादें कसे बदलेंगी,
अक्सर याद आ जाते है वो चाचा जी का खुमचा
वो बूबू जी कि दुकान तेरे शहर में|
ya
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