ना आते जिन्दगी में तो ठीक था |
या ना जाते जिन्दगी से तो ठीक था|
किस कदर चाहते हें ना बता पाए हम,
बिन बताये समझ जाते तो ठीक था|
इश्क के बाजारी अंजाद से
वाखिफ हम नहीं,
बदलते रहे रोज़ रस्ते
वो ये कदम नहीं,
तुम भी कुछ गवांजी अंदाज़ में,
इश्क फरमाते तो ठीक था|
वो दो पल के प्यार की बरसात
मै कैसे भूल पाउँगा ?
अब तो उन पलों की तलाश में,
मै अपनी उम्र गवाऊंगा|
उस दिन घर, छोड़कर उस शहर
हम ना आते तो ठीक था|
बहुँत हो गया सिलसिला,
बरबादियों का यार मेरे|
अल्फाज़, सोच और रस्ते
सब बदल दिए आपने,
अब तो खाव्बों में भी
आप ना आते तो ठीक था|
कुछ बिछड़े हुवे पलों की सौगात
बन गई ये जिंदगी,
उम्र भर के लिए मौसम-ए-बरसात
बन गई य़े जिंदगी,
वक्त के उन पलों के साथ
हम भी गुज़र जाते तो ठीक था|
जुवे के दाव पेंचो में उम्र गुज़ार दी हमने
मोहबबत की तलाश में सब कुछ लुटा बैठे,
और आपके प्यार में मिलावट ऐसी
कि प्यास बुझी ही नहीं,
काश !आप आते हुवे शहर से
शराब उधार ले आते तो ठीक था|
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