अपनी गलती से यहाँ बस गलत नहीं हूँ मैं |
इस जमीं पर भार भी फकत नहीं हूँ मैं |
में वो भी नहीं की तुम सिर्फ ढूँढो मैखाने ही,
यों, पत्थरों के मंदिरों का भी भगत नहीं हूँ मैं |
देखा होगा तूने मुझे कभी अब वो बखत नहीं हूँ मैं |
सूर्य हू, टूट जाऊ जलता हुवा नखत नहीं हू मैं |
रुकना नहीं तुझ पर, आगे तलक भी जाना है,
अब, मुल्ला का मस्जिद वाला वो पथ नहीं हू मैं|
दिलों में जगह चाहता हूँ पर नफ़रत नहीं हू मैं |
जंगी हुनर भी हू, हार की फितरत नहीं हू मैं |
ढह कर बुझाना जनता हूँ शहर की आग को,
नामर्दों को दिखाऊ तमाशा वो छत नहीं हू मैं |
रोहित कुमार गढ़कोटी.
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