मोहब्बत मे इंसा क्यों इतना मजबूर हो जाता है,
रहते हुवे शहर मे और शहर से दूर हो जाता है|
आदमियत की नियत पे शक होता है मुझे अब,
दिल तोड़ता है सरेआम और बेकसूर हो जाता है|
उसकी गली से निकलते सर झुक जाता है खुद,
उसको खुद के खुदा होने का गुरूर हो जाता है|
सरेआम बिकती है बिना कायदों के मोहब्बत यहाँ,
वफ़ा के बाजार मे दिलवाला मजदूर हो जाता है|
खाक मै मिलाके वसीयत अपनी इश्क करते है लोग,
ये खबर फैली आज कल तो वो मगरूर हो जाता है|
तेरे कसीदों के लिए मै शायर बन बैठा ये साकी,
रोज पीयू कुछ नहीं दिल जले तो सुरूर हो जाता है|
..रोहित कुमार
रहते हुवे शहर मे और शहर से दूर हो जाता है|
आदमियत की नियत पे शक होता है मुझे अब,
दिल तोड़ता है सरेआम और बेकसूर हो जाता है|
उसकी गली से निकलते सर झुक जाता है खुद,
उसको खुद के खुदा होने का गुरूर हो जाता है|
सरेआम बिकती है बिना कायदों के मोहब्बत यहाँ,
वफ़ा के बाजार मे दिलवाला मजदूर हो जाता है|
खाक मै मिलाके वसीयत अपनी इश्क करते है लोग,
ये खबर फैली आज कल तो वो मगरूर हो जाता है|
तेरे कसीदों के लिए मै शायर बन बैठा ये साकी,
रोज पीयू कुछ नहीं दिल जले तो सुरूर हो जाता है|
..रोहित कुमार
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