सोमवार, 20 जून 2011

आसमां नहीं जीतता, जो परेशां नहीं होता.

वो इंसा, इंसा नहीं होता कैद सीने मै जिनके तूफां नहीं होता.
की रब ने तो भेजा है हमै ऊंची  उडान के  वास्ते  यहाँ,
वरना घर के  बाहर हमारे इतना बड़ा आसमा नहीं होता.
 कौन भला इश्क की तलाश में  दीवाना हो जाता यूं ही,
गर जमीं पर फैला उसकी दुवाओं का करिश्मा नहीं होता.
 उठा के  सर चल देने वालों  पर ही उसका नूर बरसता  है,
हम सोये रहते है इसलिए वो हम पर मेहरबाँ नहीं होता.
खरीद ही लेते हम भी जरूर कुछ तो शेयर मोहब्बत के,
काश बेकारी के ज़माने मै हमारे हुस्न उनका जवां नहीं होता.
खाना खराबी का शौक था, यही  पेशा बना लिया हमने,
वरना  मंदी  के इस  दौर मै बेरोजगार इंसां कहा नहीं होता.
मैं  इंसां को देख परेशां, खुश होता  हू कारण है!
आसमां नहीं जीतता संतुष्ट  हो जाता है  जो परेशां  नहीं होता.
तू देख अंदाज मेरा मौत के घर घुसकर जंग का ऐलान करता हूँ,
तू कहता है तेरा उससे कभी सामना नहीं होता.
डरता क्यों है जो घिर गया तू चंद भेड़ों की जमात मै!
सत्य कैद रहे ज्यादा  समय, ऐसा कोई मकां नहीं होता. 
यारो! ये तो मैं  माँ की दुवाओं का घना साया साथ लेकर चलता हूँ,
वरना ब्रहमांड जीत का सपना देखना भी इतना आसां नहीं होता.

                                                                                        ..रोहित कुमार