इस बार कि ठण्ड में एक कम्बल कम था न तेरे पास
वही पिछले साल वाली जेकेट से
एक बच्ची ने कम चलाया
एक माँ पुरे साल परेसान रही
एक चारपाई ले लेना बेटे
क्यों सोता है जमीन में
एक बाप अकेला गाओं में
उलझा रहा अबकी ठण्ड
अम्मा ने ठण्ड कसे निकली अबकी नही पता
मुझे परेसान होने कि आदत है ये सब सोचकर
कोई ठण्ड से परेसान नही हुवा
कोई नि। ....बस इसलिए
एक खुदगर्ज ने भुला दी ठण्ड उनकी
फौलाद सी सभ्यता बीज पत्थर पर बो दिए
तेरी जाती ने तुझ से इंसान केसे पैदा किया केसे
तू सियासतदान अपनी औकात देखना
तू नामुरादों ने किस तरह
जातियों और लाशों से बुनकर तकथ बना दिया
रोटी ढूढ़ते पेटों में बम बांधे इन लोगों ने
कुछ कुत्तों एक बेटे को सरगना बना दिया
मुझे भी इश्क़ है जहाँ मैं भी बंदा हु इसी जहाँ का
मगर ये रेखाए खीचकर तेरे बेटों ने क्या किया
इन राष्ट्रों ने केसे सिपाही बना दिए बन्दे
इन बन्दों के दिलों का क्या किया ?
तू लाल झंडे को सलाम कर या फिर काले को
मुझे बता तूने अपने ईमान का क्या किया
लाखो मरे भूख से किसी को क्यों खबर हो
भीड़ इखट्टा हो गई किसी ने पुतला जला दिया
एक बार फिर बू आ रही है इंतखाबादी यहा से
एक बस्ती को फिर किसी ने खाक मै मिला दिया
मरे सीने में जो आग थी उसका क्या करता दस्यन्त
कुछ सुझा नही तो मेने अपना दिल जला दिया
थरथराती होंगी तेरे दौर में दीवारें
कुछ न हुवा बाद उसके वो गिरी
और लोगों ने जहाँ जला दिया
वो गली के कचरे बीनता है नामुराद है वो
जो लूट रहा तो है कह रहे है देश चमका दिया
ये वो बर्फ जमी दे दिलों में, बर्बाद करेगी एक दिन
सुमंदर कि सन्ति ने अबी मौका दिया है
ये जो लाल धराये दिल से रोज आती जाती है
कोई कम आये आएगी खुद से वडा किया है
में उम्र भर जी न पाऊँ तो बात ही क्या है