रविवार, 25 सितंबर 2011

चिंता न करो तुम

अपने प्यारे  हिंदोस्ता की शान बतलाऊंगा कभी
चिंता न करो तुम|
अमन के दुश्मनों का दिल दहलाऊंगा कभी
चिंता न करो तुम |
मै क्या हूँ अभी, मुझे समझोगे  भी क्या तुम
कुछ बनकर दिखलाऊंगा कभी
चिंता न करो तुम |
धर्म के नाम  पे दिलों में राज करने  की
साजिस रचते हो,                     
कुत्तों की तरह दौड़ाउंगा
चिंता न करो तुम |
मासूम सी अवाम को फुसलाकर 
जो तुमने अत्त्याचार किये
बेकदर कर, बेमौत मरवाउंगा कभी
चिंता न करो तुम |
अट्टालिकाओ में छुप जाते हो|
देश को लूटकर चोरो,
झोपड़ियों की ताकत बतलाऊंगा कभी
चिंता न करो तुम|
दुर्योधन बने हो  अभी
मर्जी भर लूट लो चीर को,
अर्जुन बन कहर बरपाउंगा कभी
चिंता न करो तुम | 
दुनिया के सामने सर झुकाया है
तुमने भारत   माँ का, रखवालो
सरे बाज़ार सर तुम्हारे कटवाउंगा कभी
चिंता न  करो तुम |
                                              रोहित कुमार.....

शनिवार, 24 सितंबर 2011

डाइलोग पुराने हो गए.....

थोडा सा प्यार क्या मांग लिया,
वो कहने लगे डाइलोग पुराने हो गए |
अर्जुन की रवायत  अब कहाँ रही यहाँ,
अब तो तीर  एक और कई निशाने हो गए |
उम्र में हमसे छोटे ही होंगे वो जनाब,
बड़े शहर  में रहते हे थोडा जल्दी सयाने हो गए |
बातों के  सिलसिले में खुसमादी का पुट,
ये हमारा ही दुश्मन निकला,
दुनिया समझ रही हम दीवाने हो गए|
एक सवाल कल रात किया हमने
जबाब नहीं अब तलक आया
कितने ज़माने हो गए |

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

"मैं"....

अपनी गलती से यहाँ बस गलत नहीं हूँ मैं |
इस जमीं पर भार भी फकत नहीं हूँ मैं |
में वो भी नहीं की तुम सिर्फ ढूँढो मैखाने ही,
यों, पत्थरों के मंदिरों का भी भगत नहीं हूँ मैं |

देखा होगा तूने मुझे  कभी अब वो बखत नहीं हूँ  मैं |
सूर्य हू,  टूट जाऊ जलता हुवा नखत नहीं हू मैं |
रुकना नहीं तुझ पर, आगे तलक भी जाना है,
अब, मुल्ला का मस्जिद वाला वो पथ नहीं हू मैं|

दिलों में जगह चाहता हूँ पर नफ़रत नहीं हू मैं |
जंगी हुनर भी हू, हार  की फितरत नहीं हू मैं |
ढह कर बुझाना जनता हूँ  शहर की आग को,
नामर्दों को दिखाऊ तमाशा वो छत  नहीं हू मैं |

                                                   रोहित कुमार गढ़कोटी.