"प्रेम" क़ुदरत की जिद है ......... पंडितो, मौलवियों की नफरत से बहुत ताकतवर ..... जाति, सीमाओं में बटे इंसानों के झूठे, दिखावटी शान, ईमान और धर्मो से बहुत ऊपर, ...."कुदरत का धर्म है प्रेम"....... मानवता का ही नहीं बल्कि प्राणीमात्र का सर्वोत्तम आनंद और अंतिम मंजिल भी है ......... कुदरत हमें आजादी का अधिकार देती है, और प्रेम का सन्देश ........जातियों, धर्मो, सीमाओं की धज्जिया उड़ाने वाले क़ुदरत के इस पवित्र नूँर को लाखों सलाम।।।।।।।।
रविवार, 28 अप्रैल 2013
"प्रेम" क़ुदरत की जिद है ......... पंडितो, मौलवियों की नफरत से बहुत ताकतवर ..... जाति, सीमाओं में बटे इंसानों के झूठे, दिखावटी शान, ईमान और धर्मो से बहुत ऊपर, ...."कुदरत का धर्म है प्रेम"....... मानवता का ही नहीं बल्कि प्राणीमात्र का सर्वोत्तम आनंद और अंतिम मंजिल भी है ......... कुदरत हमें आजादी का अधिकार देती है, और प्रेम का सन्देश ........जातियों, धर्मो, सीमाओं की धज्जिया उड़ाने वाले क़ुदरत के इस पवित्र नूँर को लाखों सलाम।।।।।।।।
बुधवार, 24 अप्रैल 2013
प्रेम फ़र्ज़ भी है , प्रेम जिम्मेदारी भी है , प्रेम अपने आप मै एक धर्म है। सब धर्मो से बड़ा धर्म, जाति-पाति से बहुत ऊपर, मानवता से ऊँचा प्राणिमात्र का धर्म, कुदरत का धर्म है प्रेम। .....यह इन्सान को ऊँचा उठाता है, साहसी बनता है, .......मुझे गर्व है कि मैं इसे महसूस कर सकता हूँ, और मै इसमें जीना चाहता हूँ
शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013
बात बड़ी है, बहुत बड़ी, कि घर छोड़ना है।
और शर्त साथ मै ये, कि शहर छोड़ना है।
जिस दर से हमने सीखा, मौहब्बत करना,
मौहब्बत के खातिर, अब वो दर छोड़ना है।
महबूब कहे साथ ले चल हमै, दूर कही ,
और दिल कहता है , ये सफ़र छोड़ना है ।
कौन है इंसा की जातियां बाँटकर, खुश यहाँ ,
एक रोज तो हर परिंदे को, पर छोड़ना है।
मंदिर- मस्जिद मै बंट बंट गयीं जमीनें सारी,
जंगल बेहतर हैं, अब तो ये नगर छोड़ना हैं।
जात, जातियों की मिटाने के खातिर अबके,
हम-तुम ने ही मौह्ब्बतों का जहर छोड़ना है।
.......................................................रोहित
और शर्त साथ मै ये, कि शहर छोड़ना है।
जिस दर से हमने सीखा, मौहब्बत करना,
मौहब्बत के खातिर, अब वो दर छोड़ना है।
महबूब कहे साथ ले चल हमै, दूर कही ,
और दिल कहता है , ये सफ़र छोड़ना है ।
कौन है इंसा की जातियां बाँटकर, खुश यहाँ ,
एक रोज तो हर परिंदे को, पर छोड़ना है।
मंदिर- मस्जिद मै बंट बंट गयीं जमीनें सारी,
जंगल बेहतर हैं, अब तो ये नगर छोड़ना हैं।
जात, जातियों की मिटाने के खातिर अबके,
हम-तुम ने ही मौह्ब्बतों का जहर छोड़ना है।
.......................................................रोहित
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