रविवार, 12 मई 2013

 शहर दुखी है चुप  है

शहर  दुःख है
उसकी प्यारी नदी सूख रही है
शहर का दुःख है
इस बार नेताजी को
शरीफों ने बड़ी चुनोती दी है
शहर का दुःख है
बाप ने बेटी बचपने मै ब्याह दी
की बेटा बोर्डिंग में अच्छे  से पढ़े
शहर का दुःख है
की मस्जिद की आवाज़
खुदा  तक पहुच नही पा रही है
शहर का दुःख है
फिर एक प्यारी सी बच्ची
बड़ी होने लगी है
शहर का दुःख है
गुंडे खुले आम टोपियाँ पहन
 सडको पर भी आने लगे
शहर का दुःख है
 दूर गाँव में  बिजली तो नही है
पर पेप्सी- कोक ठंडा बिक जा रहा है
शहर का दुःख है
 कही जातियां ईमान हो रही है
कही  धरम के  मै  है
शहर का दुःख है
 के  ने  




रविवार, 28 अप्रैल 2013


"प्रेम" क़ुदरत की जिद है ......... पंडितो, मौलवियों की नफरत से बहुत ताकतवर ..... जाति, सीमाओं में बटे  इंसानों के झूठे, दिखावटी शान, ईमान और धर्मो से बहुत ऊपर, ...."कुदरत का धर्म है प्रेम"....... मानवता का ही नहीं बल्कि प्राणीमात्र का सर्वोत्तम आनंद और अंतिम मंजिल भी है ......... कुदरत हमें आजादी का अधिकार देती है, और प्रेम का सन्देश ........जातियों, धर्मो, सीमाओं  की धज्जिया  उड़ाने वाले क़ुदरत के इस  पवित्र नूँर को लाखों सलाम।।।।।।।। 

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

  मानव की  मानवता को ऊँचा उठता है ...जीवन के वास्तविक अर्थो की तरफ बढ़ना सिखाता है.....खुद  के बारे में कुछ कहता  नही ..........कुदरत की सबसे खूबसूरत नेमत है  ......... ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ,,,,,,,,," मोहब्बतों की इस सुन्दरता को सैकड़ो सलाम "
तेरे प्यार ने अंधा किया
दुनिया ने  हमे  लूट  लिया 
प्रेम फ़र्ज़ भी है , प्रेम जिम्मेदारी भी है , प्रेम अपने आप मै एक धर्म है। सब धर्मो से बड़ा धर्म,  जाति-पाति  से बहुत  ऊपर, मानवता से ऊँचा प्राणिमात्र का धर्म, कुदरत का धर्म है प्रेम। .....यह इन्सान को ऊँचा उठाता है, साहसी बनता है, .......मुझे गर्व है कि मैं  इसे महसूस कर सकता हूँ, और  मै इसमें जीना चाहता हूँ 
संगीनों के साये और, शहर जल रह है।
जलने  थे मंदिर मस्जिद  घर जल रहा है
  चल खैर मना ले, ओ  पुलिसिया जाती तू
 देख तुझको अब मेरा जिगर जल रहा है।।।।।।।।। 

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

 बात बड़ी है, बहुत बड़ी, कि  घर छोड़ना है।
और शर्त साथ मै ये,  कि  शहर छोड़ना है।
जिस दर से  हमने सीखा, मौहब्बत  करना,
मौहब्बत के खातिर, अब वो दर छोड़ना है।

महबूब  कहे साथ ले चल हमै,  दूर  कही ,
और दिल कहता है , ये सफ़र छोड़ना है ।
कौन है इंसा की जातियां बाँटकर, खुश यहाँ ,
एक रोज  तो हर परिंदे को, पर छोड़ना है। 

मंदिर- मस्जिद मै बंट बंट गयीं जमीनें सारी,
जंगल बेहतर हैं, अब तो  ये नगर छोड़ना हैं। 
जात, जातियों की मिटाने के खातिर अबके,
हम-तुम ने ही मौह्ब्बतों  का जहर छोड़ना है।
.......................................................रोहित


बुधवार, 13 मार्च 2013

 भाई  साहब बड़े स्कूल में पढ़े है,  बहुत परसेंट  नम्बर  वाले भी   है मुझे आज  कम्युनिज़म   समझा रहे थे,,,,
बहुत  देर से खिच- खिच  सुन रहा था   ......दिक्ख लग गया .......फिर मैंने  कहा  भाई साहब  सरकारी स्कूल  में पढ़ा हूं  ...जन्मजात हूँ .....श्री श्री १० ८  से भी पूछ लेना  ...... बस से स्कूल जाने वाला,,,,,,,,,,, लंच पे पिज्जा खाने वाला ....चला कम्युनिज़म समझाने ......७ किलोमीटर पैदल चलके स्कूल जाता था ......रस्ते के जंगल में  तेरे बाप के  लोग जंगल काट- काट तख्ते बना बेचते थे ......तब समझा था मैं  कम्युनिज़म,,,,  जब पत्थर फेक तेरे बाप के बंदरो को  भगाने की नाकामयाब गुस्ताखी की थी ....तब समझा था ...... ...जब फुटपाथ लगाने चोराहे पे अकेला भिड़ गया था पचास जानवरों से,,,,,,,,,,, .... ......अमीरजादों की औलाद जब कम्युनिज़म समझाते है ,,,,भून के खा जाने का मन करता है ......



रविवार, 10 मार्च 2013

 आसमां को  आँखें    दिखा रही है,
एक पगली  ख़ुदाया  को डरा रही है ,
उसने कहा है  बुनियाद हिला देगी  
 वो मौह्ब्ब्तों से बम बना रही है ...
दावा उल्फत का, शैतान मिजाजी
 परिंदे सी है , दिल मै घर लगा  रही है
मेरी औकात क्या, प्यार ना हो मुझे
वो दीवानी अब  दिल बिछा रही है।
                      ....................रोहित