मंगलवार, 15 नवंबर 2011

मै तुझे पार में मिलूँगा....

ना घर, ना शहर
और न बाज़ार में मिलूँगा,
मै तो खोया हुवा बस
अपने ही संसार में मिलूँगा|
किसी के मानिंद
अपनी ही नस्ल का दुश्मन मै नहीं,
गरीब की दुवाओं में कही,
कही  बच्चो के प्यार में मिलूँगा |
ये दुनिया मजहबों के भरोसे
नहीं चली कभी यार मेरे,
मिल सका  कभी तो
संस्स्कारों  के उद्दार में मिलूँगा|
तुझे करनी है कश्ती तो तू कर ले
मुझे छोड़  दे,
डूबने जा रहा हूँ  अभी
मै तुझे पार  में मिलूँगा|
इस फकीरी की कीमत
 क्या बताऊ तुझे अभी,
दुनिया बदल चुकी होगी
तब बिचार में मिलूँगा |
जो मजहब तोड़ने की कोसिस करे
 मेरे हिंदोस्ता को,
 उस धर्म को बेच दूंगा
मै इसी ब्योपार मे मिलूँगा|
मोह्हबत तो मैने भी करी है
पर मै ताजमहल नहीं बनाता,
कभी माँ के क़दमों मैं
 तो कभी किसी गरीब की झोपड़ी के आधार मे मिलूँगा|
सीमाओं के झूठे  तनाव का
मै सिपाही नहीं,
मोह्हबत के वास्ते हो  जंग
तो धुवाधार मै मिलूँगा|
                                                 रोहित....

रविवार, 13 नवंबर 2011

मिला करो..

कभी कभार मिला करो  मेरे यार मिला करो,
नदिया के वार  मिलो या पार मिला करो |
सुबह मिलो मस्जिद से निकलते हुवे,
फिर दिन भर बाज़ार मिला करो |
दोस्त पंडित तुम भी तो यार मिला करो,
क्या खूब है कहो संसार मिला करो|
शहर में आग लगी हो लगने दो,
तुम मंदिर में गुलज़ार मिला करो |
मिलना जुलना यही तो है प्यार मिला करो,
और कहो जिया  है बेक़रार मिला करो|
मैखाने को ही मंदिर समझो.
तीन धर माथे पे  यार मिला करो |
पोथी के पंडित रेखाओं के होसियार  मिला करो.
हम भी है ही बेवड़े लुटने को तैयार  मिला करो |
मंदिर के पत्थर को दूध पानी पिलाते रहो.
 खुद पियों मै  की धर मिला करो|
                                                    रोहित...

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

ये माना, एक लम्हा हूँ मैं   वक्त जिसे भूल गया.
और एक एक परिंदा सा , झुण्ड का बिछड़ा है जो  .
पर एक आवाज भी हूँ,  मस्जिद से निकली हुवी.
उस तक पहुचना है, उम्मीद है मुझसे दुनियां की |