शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

 बात बड़ी है, बहुत बड़ी, कि  घर छोड़ना है।
और शर्त साथ मै ये,  कि  शहर छोड़ना है।
जिस दर से  हमने सीखा, मौहब्बत  करना,
मौहब्बत के खातिर, अब वो दर छोड़ना है।

महबूब  कहे साथ ले चल हमै,  दूर  कही ,
और दिल कहता है , ये सफ़र छोड़ना है ।
कौन है इंसा की जातियां बाँटकर, खुश यहाँ ,
एक रोज  तो हर परिंदे को, पर छोड़ना है। 

मंदिर- मस्जिद मै बंट बंट गयीं जमीनें सारी,
जंगल बेहतर हैं, अब तो  ये नगर छोड़ना हैं। 
जात, जातियों की मिटाने के खातिर अबके,
हम-तुम ने ही मौह्ब्बतों  का जहर छोड़ना है।
.......................................................रोहित


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