बुधवार, 24 अप्रैल 2013

प्रेम फ़र्ज़ भी है , प्रेम जिम्मेदारी भी है , प्रेम अपने आप मै एक धर्म है। सब धर्मो से बड़ा धर्म,  जाति-पाति  से बहुत  ऊपर, मानवता से ऊँचा प्राणिमात्र का धर्म, कुदरत का धर्म है प्रेम। .....यह इन्सान को ऊँचा उठाता है, साहसी बनता है, .......मुझे गर्व है कि मैं  इसे महसूस कर सकता हूँ, और  मै इसमें जीना चाहता हूँ 

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